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अदि॑त्यै॒ रास्ना॑सीन्द्रा॒ण्याऽउ॒ष्णीषः॑। पू॒षासि॑ घ॒र्माय॑ दीष्व ॥३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अदि॑त्यै। रास्ना॑। अ॒सि॒। इ॒न्द्रा॒ण्यै। उ॒ष्णीषः॑ ॥ पू॒षा। अ॒सि॒। घ॒र्माय। दी॒ष्व॒ ॥३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:38» मन्त्र:3


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्त्री को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे कन्ये ! जो तू (अदित्यै) नित्य विज्ञान के (रास्ना) देनेवाली (असि) है, (इन्द्राण्यै) परमैश्वर्य करनेवाली नीति के लिये (उष्णीषः) शिरोवेष्टन पगड़ी के तुल्य (पूषा) भूमि के सदृश पोषण करनेहारी (असि) है, सो तू (घर्माय) प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध सुख देनेवाले यज्ञ के लिये (दीष्व) दान कर ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे स्त्रि ! जैसे पगड़ी आदि वस्त्र सुख देनेवाले होते हैं, वैसे तू पति के लिये सुख देनेवाली हो ॥३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्त्रिया किं कार्य्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अदित्यै) नित्यविज्ञानम्। अत्र कर्मणि चतुर्थी। (रास्ना) दात्री (असि) (इन्द्राण्यै) परमैश्वर्य्यकारिण्यै राजनीत्यै (उष्णीषः) शिरोवेष्टनमिव (पूषा) भूमिरिव पोषिका (असि) (घर्माय) प्रसिद्धाऽप्रसिद्धसुखप्रदाय यज्ञाय (दीष्व) देहि। अत्र शपो लुक् छन्दस्युभयथा [अ०३.४.११७] इत्यार्द्धधातुकत्वम् ॥३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - कन्ये ! मा त्वमदित्यै रास्नासि उष्णीष इवेन्द्राण्यै पूषासि सा त्वं घर्माय दीष्व ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे स्त्रि ! यथोष्णीषादीनि वस्त्राणि सुखप्रदानि सन्ति, तथा पत्ये सुखानि प्रयच्छ ॥३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे स्रिये ! पगडी वगैरे जशी सुख देणारी वस्रे असतात तशी पतीसाठी तू सुख देणारी आहेस.